जिला मुख्यालय छतरपुर से सत्रह किलोमीटर पूर्व में पन्ना रोड पर स्थित ग्राम बसारी में 8 जून 1960 को Dr. Kunjilal Patel ‘Manohar’ का जन्म हुआ। इनके पिताजी का नाम श्री गिल्ले पटेल तथा माताजी का नाम श्रीमती मुल्लीबाई है।
डॉ. कुन्जीलाल पटेल ‘मनोहर’ का परिवार किसानी करता है। कृषक परिवार में जन्में श्री मनोहर का बचपन अपने गाँव बसारी में बीता। प्रारंभिक शिक्षा इनकी बसारी तथा कर्री में हुई। इसके बाद इन्होंने छतरपुर से उच्च शिक्षा ग्रहण की। एम.ए. करने के बाद आप स्कूल शिक्षा विभाग में अध्यापक के रूप में काम करते रहे।
Dr. Kunjilal Patel ‘Manohar’ अपनी प्रतिभा के बल पर आपने ‘बुन्देली फाग साहित्य’ पर शोध उपाधि प्राप्त की। इसके बाद मध्यप्रदेश की महाविद्यालयीन शिक्षा में आपने नौकरी की। आप सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।
घूमत फिरत नंद कौ छौवा, संग लये सखा गुलौवा।
फिरत व्यर्थ मड़रात सखिन पै, जैसे भूखे कौवा।
ओड़ें फिरे कमरिया कारी, माथें मोर पखौवा।
गली रखाये भुनसारे सें, जैसें रतवाँ मौवा।
आज धुनक लो इन्हें ‘मनोहर’ लये सब सखी गुटौवा।।
जब श्रीकृष्ण की हरकतों से गोपियाँ परेशान हो जाती हैं तब वे (गोपियां) अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहती हैं कि ब्रज में अपने साथ पूरी मित्र मण्डली लिए नन्द का पुत्र इधर-उधर घूमता फिरता है, वे सखियां पर व्यर्थ में ऐसे मँडराते हैं जैसे कहीं पर दाना-पानी देखकर भूखे कौवे मँडराते हैं।
उसी तरह कृष्ण कमरिया ओढ़े और मयूर का पंख लगाए घूमते हैं। जिस प्रकार रतवा (रात में टपकने वाला) महुआ के पेड़ को रखाने वाला नजर गड़ाये बैठा रहता है उसी प्रकार वह (श्रीकृष्ण) तड़के से गलियों में घूमता है। कवि आगे कहते हैं कि एक गोपी अपनी सहेलियों से कहती है कि सभी सखियाँ इकट्ठा होकर आज इनको जी भरकर तंग कर लिया जाये।
बैठ श्याम कदम की डारन, तन पीतम्बर धारन।
आई उमझ फेटा से मुरली, लागे तुरत निकारन।
धर अधरन पर फूंक दई तब निकरीं तान हजारन।
मुरली मेहो नाव सखिन के लै-लै लगे पुकारन।
सुनके तान ‘मनोहर’ सखियाँ सजी मिलन के कारन।
कवि मनोहर कहते हैं कि कृष्ण पीले वस्त्र धारण करके कदम पेड़ की डाल पर बैठे हुए हैं, अचानक वंशी की याद आने पर उसको कमर से तुरन्त निकाला और जैसे ही उसको अपने होठों पर रखकर बजाया तो उससे अनेक प्रकार की धुनें निकल पड़ी, कृष्ण मुरली के द्वारा गोपियों के नाम पुकारने लगे और जैसे ही मुरली की धुनों को गोपियों ने सुना तो सभी कामकाज छोड़कर मिलने के लिए तैयार होने लगी।
शोध एवं आलेख – डॉ.बहादुर सिंह परमार
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर (म.प्र.)