नायिका ’चँदना‘ जिसका प्रेम सबल सुनार से हो गया था। Chandana Aur Sabal Sunar के प्यार की चर्चा गली-गली होने लगी थी। इस बदनामी से रक्षा के लिए उसकी भौजी ने आँचर के कागज पर नेत्रों के काजल की स्याही बनाकर उँगली की कलम से चँदना की ससुराल को पत्र लिखा और उसे गंगाराम सुआ के द्वारा भिजवा दिया।
सुआ ने कचहरी में बैठे चँदना के पति को पत्र दे दिया। पत्र देखते ही प्रसन्नता हुई, किन्तु अपयश से निराशा। लाला जी ने ससुराल जाने का निश्चय कर लिया। यद्यपि सावन में बिटिया मायके में ही रहती है, तथापि लाला जी ससुराल पहुँचे। सास ने बड़ी आवभगत की। रात्रि के समय लाला अटारी में सोने के लिए जा पहुँचे।
इधर चँदना अपनी माँग भरकर और सोलह श्रृंगार करने के बाद अपने प्रेमी के घर पहुँची। उधर लाला जी जोगी के वेश में चँदना के पीछे-पीछे सुनार के घर पहुँचे और द्वार पर भिक्षा की हाँक लगायी। चँदना थाल भरे मोती लेकर आयी, पर जोगी ने उसके गले का हार माँग लिया और घर आकर सो गये।
प्रातःकाल होते ही विदा की तैयारी हुई। चँदना माता-पिता, भाई-भौजी सबसे मिल-भेंट कर डोले में चली। मार्ग में हरे-भरे बाग में डोला उतरा। लाला जी ने चँदना से पूछा कि किसने क्या दिया है भेंट में और सबल सुनार ने क्या दिया। चँदना बोली कि माँ-बाप, भाई सबने सब कुछ दिया है, पर सबल सुनार क्या लगता है, जो कुछ भेंट करता।
लाला जी ने वही हार निकाला, जो चँदना ने सबल सुनार के घर भिक्षा में दिया था। चँदना भयभीता हरिनी-सी कम्पित हो गयी और लाला जी ने उसे कटार भोंककर मार डाला। ससुराल वाले जानते रहे कि चँदना मायके में है और मायके वाले समझते रहे कि ससुराल में है।