Homeभारतीय संस्कृतिBhartiya Kala Ke Pratikatmak Vishay भारतीय कला के प्रतीकात्मक विषय

Bhartiya Kala Ke Pratikatmak Vishay भारतीय कला के प्रतीकात्मक विषय

भारतीय कला के जो वर्ण्य विषय हैं, वस्तुतः उनका महत्व सबसे अधिक है। उनमें भारतीय जीवन और विचारों की ही व्याख्या मिलती है। Bhartiya Kala Ke Pratikatmak Vishay की विशेषता यह थी कि सामान्य जनता के धार्मिक विश्वास कला में बुद्ध, महावीर, शिव और विष्णु के उच्चतर धर्मों के साथ मिलकर परिगृहीत हुए।

भारतीय धर्म में एक ओर बुद्ध, शिवरुद्र या नारायणविष्णु का तत्वज्ञान भी है और दूसरी ओर उन अनेक देवताओं की पूजा मान्यता भी है जो मातृभूमि से संबन्धित थे जैसे- यक्ष, नाग, नदी, सागर, चन्द्र, सूर्य, इन्द्र, स्कन्द, रुद्र, आदि Bhartiya Kala Ke Pratikatmak Vishay हैं। देवपूजा के वे प्रकार जैसे लोक में थे वैसे ही कला में भी अपनाए गए। इस प्रकार विशिष्ट और सामान्यजन दोनों की मान्यताओं का चित्रण भारतीय कला में हुआ है।

यह प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक युगों तक विभिन्न सभ्यताओं में प्रयुक्त विभिन्न प्रतीकों, अभिप्रायों और विषयों को लेकर चली है। विभिन्न धर्मानुयायी इच्छानुसार कई चिन्हों को एक एक प्रतिमा या मूर्ति में स्वीकार करके पुनः उनके महात्म्य का वर्णन करते थे।

विभिन्न देवी-देवताओं के साथ जुड़ जाने से प्रतीक चिन्हों का नया महत्व हो जाता था। उदाहरण के लिए वैदिक सुपर्ण विष्णु का वाहन गरुड़ बन गया, चक्र बुद्ध और महावीर का धर्मचक्र और विष्णु का सुदर्शन चक्र हो गया।इन प्राचीन मांगलिक प्रतीकों के अध्ययन से भारतीय कला के अनेक रूपों को समझा जा सकता है। आपके अध्ययन की सुविधा के लिए इनमें से कुछ का उल्लेख निम्नवत है-

बुद्ध- कला में लोकोत्तर बुद्ध का जीवन लिया गया है और उसका घनिष्ठ सम्बन्ध उन प्रतीकों से था जो मानवीय अर्थों से ऊपर दिव्य अर्थों की ओर संकेत करते हैं। उदाहरण के लिए तुषित स्वर्ग से बुद्ध का अधोगमन, श्वेत हस्ति के रूप में मायादेवी को स्वप्न और गर्भप्रवेश , माता की कुक्षि/ कोख  से तिरश्चीन जन्म, सप्तपद, शीतोष्ण जलधाराओं से प्रथम स्नान, बोधिवृक्ष, वानरों द्वारा मधु का उपहार, लोकपालों द्वारा अर्पित चार पात्रों का बुद्ध द्वारा एक पात्र बनाया जाना। 

अग्नि और जल सम्बन्धी चमत्कार का प्रदर्शन, धर्मचक्र प्रवर्तन , तैंतीस देशों के स्वर्ग में माता को धर्मोपदेश, सोने, चांदी और तांबे की सीढ़ियों से पुनः पृथ्वी पर आना आदि कला के अंकन बुद्ध के स्वरूप के विषय में प्रतीकात्मक कल्पना प्रस्तुत करते हैं, जिसका संबन्ध ऐतिहासिक बुद्ध से न होकर लोकोत्तर अर्थात बुद्ध के दिव्य रूप से है। विष्णु और शिव की दिव्य लीलाओं के समान ही इन लीलाओं का आकलन किया गया। महायान बौद्ध धर्म में इन लीलाओं का विस्तार किया गया।

शिव – सिन्धुघाटी से लेकर ऐतिहासिक युगों तक लिंगविग्रह या पुरुषविग्रह के रूप में शिव का अंकन पाया जाता है। इन दोनों का विशेष अर्थ भारतीय धर्म और तत्वज्ञान के साथ जुड़ा हुआ है। सिंधु घाटी में योगी और पशुपति के रूप में रुद्र शिव कई मुद्राओं पर अंकित मिले हैं। यजुर्वेद के शतरुद्रिय अध्याय 16 के अनुसार रुद्र शिव की पूजा देश के उत्तर-पश्चिम भाग में उस समय बहुत प्रचलित थी।

एक ओर लोकवार्ता में प्रचलित शिव के स्वरूपों को ग्रहण किया गया, किन्तु दूसरी ओर उनके साथ नए-नए अर्थों को जोड़कर उन्हें धर्म और दर्शन के क्षेत्र में नई प्रतिष्ठा दी गई। Bhartiya Kala Ke Pratikatmak Vishay के रूप में शिव के निम्न रूप मिलते हैं- पशुपति, अर्द्धनारीश्वर, नटराज, कामान्तक, गंगाधर, हरिहर, यमान्तक, चन्द्रशेखर, योगेश्वर, नन्दीश्वर, उमामहेश्वर, ज्योतिर्लिंग, रावणानुग्रह, पंचब्रह्म, दक्षिणमूर्ति, अष्टमूर्ति, एकादशरुद्र, मृगव्याध, मृत्युंजय आदि।

देवता – भारतीय कला देवत्व के चरणों में एक समर्पण है। यूप, स्तूप एवं प्रासाद या देवगृह में सर्वत्र देवता निवास करते हैं। स्तूप की हर्मिका, मन्दिर का गर्भगृह एवं यूप का ऊपरी भाग ये तीनों देवसदन हैं। श्रीलक्ष्मी, सूर्य, चन्द्र, वामनविराट, त्रिविक्रम विष्णु , सुदर्शन चक्र, अर्धनारीश्वर, कुमार, गणपति, अदिति, समुद्र, हिरण्यगर्भ, नारायण, दक्ष, अग्नि, ब्रह्म, वसु, रुद्र, आदित्य, अश्विन, गण देवता, सप्तर्षि, नारद, गन्धर्व, अप्सरा, कुम्भाण्ड, नाग, यक्ष, नदी, देवता, सिद्ध, विद्याधर आदि प्रतीक भारतीय संस्कृति व कला में वैदिक युग की जीवन विधि या साहित्य से अपनाए गए।

धार्मिक एवं दार्शनिक भाव– स्वस्तिक, दैवासुर संग्राम, त्रिविक्रम, ज्योतिर्लिंग, वाराह द्वारा पृथ्वी का समुद्र से उद्धरण, सप्तपदी, तिरश्चीन निर्गमन( इन्द्र, बुद्ध और स्कन्द का मातृकुक्षि से तिर्यक जन्म), अग्नि स्कन्ध=ज्योतिर्लिंग (आग का खम्भा) आदि।

पशु पक्षी- एकश्रृग पशु , महावृषभ, छोटे सींगों वाला नटुआ बैल, महिष, गैंडा, व्याघ्र, हाथी, खरगोश, हिरन, मत्स्य, कूर्म, वराह, मकर, सिंह, नाग, अज, नकुल, व्याल, विकट ईहामृग, आदि। धर्म सम्बन्धी काल्पनिक पशु (उदाहरणार्थ एक मुद्रा पर अंकित पुरुष पशु, जिसके पैरों में खुर, सिर पर सींग और पीछे पूंछ है, जो एक काल्पनिक पशु  जिसके शरीर का अधिकांश व्याघ्र जैसा है, कुश्ती कर रहा है) आदि (हड़प्पा सभ्यता की मुहरों पर अंकित)।दो सिरों वाला बैल, नन्दी, अनन्त (सहस्रशीर्षा शेषनाग), वराह, वृषभधेनु(गाय बैल का जोड़ा), देवजात अश्व,ऐरावत (तुषित स्वर्ग से उतरता हुआ श्वेत हस्ति, जो बुद्ध की माता की कुक्षि में प्रविष्ट हुआ) हंस, गरुड़, सारस आदि।

मानव- मुनि, अष्टकन्याएं, अष्टदिक्कुमारिकाएं, चक्रवर्ती, सात बहिनें, नर (कुबेर के विशेष वाहन), शिशु, देवयोनि।

अर्धदेव-नाग, यक्ष, विद्याधर, गन्धर्व, किन्नर, सुपर्ण, कुम्भाण्ड, लोकपाल, अप्सराएं, वृक्षकाएं, चतुर्महाराजिकदेव।

विविध वस्तुएं और पदार्थ-वेदिका, पूर्णकुम्भ, चक्र, यूप, स्तम्भ, इन्द्रयष्टि (त्रिभुजांकित ध्वज), वेदिका, त्रिशूल, वज्र, केतु (ध्वज), मण्डल (कुण्डल), चमू (बड़ा घट), मांगलिक रत्न, मधुकोश (कपियों द्वारा बुद्ध को प्रदत्त शहद भरा कटोरा), इन्द्रासन (स्वर्ग में इन्द्र का महान आसन), पात्र, मणि, भद्रमणि, कौस्तुभ, शंख, मुक्ता, अष्टनिधिमाला, कण्ठा, हार, छत्र, रथ, विमान, शकट, पर्वत, नदी, वारुणी, घट, पूर्णघट, कार्षापण, मेखला, चामर, आदर्श (दर्पण), यूप(स्तंभ), स्थूणराज(बड़ा खम्भा), स्तूप, देवगृह (या विमान), कुटी या पर्णशाला, कपिशीर्षक (कंगूरे), रत्न, मुकुट, वीणा, वंशी, मृदंग, मजीरे, देववाद्य आदि।

वृक्ष, लता, वनस्पति और पुष्प पौधे- व्याल युक्त पीपल, पद्म या पुष्कर, कल्पवृक्ष, कल्पलता, पीपल, वट, माला, मुचकुन्द, ताल, पुण्डरीक, आदि।

अन्य- मिथुन (नरनारीमय अलंकरण), सुमेरु पर्वत, द्यावापृथ्वी, विमान (देवगृह), पुर, देवसदन (बौद्ध स्तूपों की हर्मिका), गुहा आदि।

शस्त्र आदि- त्रिशूल, शूल, वज्र, चक्र या रथांग, धनुष, बाण, हल, मूसल, गदा, खड्ग, चर्म, ढाल, कवच आदि।

अभिप्राय और प्रतीक- स्वस्तिक, श्रीवत्स, श्रीचक्र, श्रीवृक्ष, त्रिरत्न, नन्दिपद, चक्र आदि।

सभ्यता और संस्कृति में अंतर 

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