बांदा के नवाब अली बहादुर द्वितीय की शिकस्त के बाद उन्हें बांदा छोड़ना पड़ा.। इस दौरान अंग्रेज सेना ने बांदा में काफी उत्पात मचा रखा था लोग डरे सहमे हुए थे , ऐसे समय में Banda Ki Virangana Sheela Devi ने अपनी सौ महिला साथियों को लेकर अंग्रेजों के साथ युद्ध का मोर्चा संभाला था।
बाँदा लुटो रात कें गुइयाँ।
सीला देबी लड़ी दौर कें, संग में सौक मिहरियाँ।
अंगरेजन नें करी लराई, मारे लोग लुगइयाँ।
सीला देबी को सिर काटो, अंगरेजन नें गुइयाँ।
भगीं सहेलीं सब गाँउन सें, लैकें बाल मुनइयाँ।
’गंगासिंह‘ टेर कें रै गये, भगो इतै ना रइयाँ।।
लेखक- गंगासिंह
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भूरागढ़ के पास वाले युद्ध में ब्रिटिश फोर्स में केवल पाँच सिपाही मारे गये और 29 घायल हुये थे। इन घायलों में ब्रिटिश फोर्स का लेफटीनेन्ट जोन, कर्नल कालबेक एवं ब्रिग्रेडियर मिलर थे। आखिरी दो अधिकारी तो गम्भीररूप से घायल थे । नवाब अली बहादुर द्वितीय बिवार की और भागे और वहाँ से जलालपुर घाट से बेतवा पार करके कदौरा गए । नवाब का परिवार कदौरा चला गया था जहाँ नवाब कदौरा ने उन्हें शरण दी।
अंग्रेज सेना के हाथों, नवाब की तेरह पीतल को तोपों के अतिरिक्त अनेक छोटी मोटी तोपें भी लगी। अंग्रेज फौज पांच दिन तक बराबर बांदा नगर को तबाह करती रही थी । वास्तव में जब नवाब बिलकुल विवश हो गए तब ही वह अप्रैल 1858 को बाँदा से भागे थे ।
अंग्रेज सेना ने बांदा मे लूट-पाट मचा दी और इस लूट-पाट से बांदा के लोग काफी डरे और सहमे हुए थे । तभी इस लड़ाई में बाँदा नगर की एक वीरांगना शीला देवी अपने साथ एक सौ महिलाओं को लेकर अग्रेजी फौजों से तलवार युद्ध के लिए कूद गईं थी । महिलाओं पर हाथ उठाना नैतिकता के विरुद्ध है किन्तु उस समय तो अंग्रेजों को हर हाल मे बांदा पर कब्जा करना था ।
ये दुर्भाग्य था की अंग्रेज सेना मे अधिकतर भारतीय सैनिक थे । वीरांगना शीला देवी अपनी महिला सहयोगियों के साथ अंग्रेज सेना को ललकारते हुए घंटों मैदान मे डटी रही । इस युद्ध मे अंग्रेज सैनिकों ने तलवार से शीला देवी का सिर काट लिया। उसके साथ की सभी महिलाओं को भी युद्ध के मैदान में अपनी जान की बलि देना पड़ी।
जिस समय नवाब बांदा छोड़कर जा रहे थे तो उसे नगर के रहने वालों ने देखा था। जब कैप्टन अपथ्रोंप नगर में दाखिल हुआ तो बांदा नगर के प्रमुख व्यक्तियों ने सफेद झण्डे दिखाशांति का इशारा किया । अंग्रेज सेना को उन्होंने बताया की नवाब महल खाली करके चले गए हैं । और विद्रोहियों ने सभी स्थान खाली कर दिये हैं । भागते समय विद्रोही सिपाहियों ने अपनी छावनी में आग लगा दी थी । जब अंग्रेज सेना महल में पहुँची तो घर में खाना तैयार रखा था लेकिन अंग्रेजी फौज के महल में के कारण नवाब भोजन छोड़कर चले गए थे । जनरल विटलाक महल की तलाशी ली तो अनेक वस्तुओं के अतिरिक्त उसे 3828 रुपयों के स्टाम्प भी प्राप्त हुए थे।
नवाब के विद्रोही हो जाने और फिर अप्रैल 1858 में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने तथा पराजित हो जाने पर बाँदा पुनः अंग्रेजी सरकार के आधीन आ गया था। ताश्वात अग्रेजी सरकार ने दिनांक 7 दिसम्बर 1858 को नवाब की सारी सम्पत्ति जप्त कर ली थी । बांदा नवाव के विरुद्ध बहुत से आरोप लगाकर उसकी समस्त सम्पत्ति तथा पेन्शन सरकार ने जप्त कर ली । बांदा के युद्ध में बांदा के अनेक गणमान्य लोगों ने भाग लिया था । कई लोगों की पेन्शन भी अंग्रेजों ने समाप्त कर दी थी।
22 अप्रैल को विद्रोहियों ने बाँदा शहर फिर अपने कब्जे में लेने और अंग्रेजों को निकाल बाहर करने का प्रयास किया था । बडी लूट मचाई और अनेक मकान जला दिये । बांदा स्थिति जालौन के राजा तथा कादिर खां के मकान नहीं जलाये क्योंकि ये दोनों नवाब के साथ विद्रोह में शामिल थे।
बाँदा पर अंग्रेज सरकार का पुनः अधिपत्य हो जाने के बाद बाँदा विद्रोही शान्त नहीं हुए। डिप्टी कलेक्टर इमदाद अली बेग तथा पैलानी के तहसीलदार मो. महसूल को बांदा में 24 अप्रैल को फांसी दे दी गई। क्यों कि ये नवाब के साथ विद्रोह में शामिल थे । वे नवाब के साथ भाग नहीं सके और पकड़े गये ।
नवाब साहब बांदा से भाग कर मौदहा आये जहां वह 22 अप्रैल को अपने 400 सैनिकों तथा 4 तोपों के साथ पड़ा हुआ था वहां से वह यमुना नदी के शेरघाट से पार करते हर कालपी की ओर भाग गए । विद्रोही शान्त कैसे होते वे तो और भी अधिक तादात में इकट्ठा होने लगे । 26 अप्रैल को बाँदा से 15 मील की दूरी पर मौदहा पर विद्रोही आक्रमण के लिए इकट्ठा हो रहे थे ।
नवाब के भाग जाने के बाद बांदा का कलेक्टर मिस्टर मेने इलाहाबाद से लौट आया तथा 26 अप्रैल से बांदा जिले का प्रशासन चलाने लगा । नवाब के पलायन करने, महल को लूटने, नवाब की सारी सम्पत्ति नष्ट करने तथा सरगना विद्रोहियों को पकड़ने के बाद भी ब्रिटिश सरकार बांदा इलाके में बहुत समय तक शान्ति स्थापित नहीं कर सकी । यहां तक कि जनरल विटलाक को 10 जून तक बाँदा में हो रुकना पड़ा।
बांदा प्रशासन ब्रिटिश सरकार ने पुनः 26 अप्रैल 1858 से सम्हाल लिया था । सितम्बर माह में विद्रोही उत्पात मचाते रहे और ब्रिटिश सरकार को अभी भी उनसे निपटने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था। उन्हें तब भी विद्रोहियों से आशंका बनी हुई थी इन्हीं कारणों से बांदा के सरकारी खजाने को असुरक्षित समझ कर सरकार को बांदा से चार लाख रुपया यमुना पार फतेहपुर के खजाने में जमा करने भारी सुरक्षा में भेजना पड़ा ।
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