Banda Ka Patan बांदा का पतन 

अनेक कोशिशों के बावजूद भी बांदा के आस-पास के राजे रजवाड़े,  किसी ने भी बांदा नवाब का साथ नहीं दिया वह चारों तरफ से अंग्रेजों से गिर गए थे। एक तरफ बांदा के नवाब अली बहादुर का बांदा से पलायन करना और  दूसरी तरफ बांदा की वीरांगना शीला देवी और उनके साथ 100 वीरांगनाओं का वीरगति को प्राप्त करना ही Banda Ka Patan का मुख्य कारण हुआ।

बाँदा के विद्रोह को दबाना आसान काम नहीं था । 3  सितम्बर को रीवां सेना की एक टुकड़ी को बाँदा जिले में शान्ति स्थापित करने हेतु सरकार को भेजनी पड़ी । सबसे पहले  इस टुकड़ी ने मानिकपुर किले से विद्रोहियों को भगा दिया।  नवाब तो अप्रेल में ही बांदा से भाग गए थे । उसके साथ अनेक बागी सिपाही तथा अन्य बागी भी पलायन कर कर गये । बागी सिपाही, पचास अनियमित घुड़सवार तथा अनेक साथी तीन चार  तोपें भी पहले से ही मौदहा में मौजूद थे । मौदहा के मुसलमान पड़ोस के गांवों के जमीदार विद्रोहियों के पक्ष में थे ।

पैलानी परगना के जसपुरा गांव में मई 1858  को डेढ़ सौ बागी सिपाही तथा तीस सवार जमा थे । वे यमुना के तटीय गाँव सिरावली घाट तथा पड़ोसी गांव पर नजर डाले हुए थे । वे इस इन्तजार में थे कि चिल्लातारा घाट के थाने को कब लूटा जाय । और चिल्लातारा घाट से ही यमुना को पार करते हुये अवध में प्रवेश किया जाय । यह बात जब पोलीटिकल असिस्टेन मेजर इलिस को मालुम हुई तो उसने चिल्लातारा घाट की मजबूती के लिए  छतरपुर राज्य की सेना की एक टुकड़ी  को दो तोपें देकर चिल्ला तारा घाट पर तैनाती हेतु भेज दी।

निवागंज कालपी से भागे हुए विद्रोही महोबा में इकट्ठे हो रहे थे, ब्रिटिश सरकार को यह जानकर चिन्ता बढ़ गई, इसी लिए चौकसी वास्ते महोबा में बिग्रेडियर नेपियर फौज के साथ तैनात था जनरल विटलाक ने मेजर डलस को आदेश दिया कि वह वांदा इलाके के गांवों में जाकर विद्रोहियों का सफाया करें, इस अभियान में उसके साथ बांदा का कलेक्टर मिस्टर मेन भी रहेगा।

इतने में खबर मिली कि मौदहा में काफी संख्या में विद्रोही जमा हो रहे हैं तथा मौदहा के किले पर कब्जा भी कर लिया है, विद्रोहियों को फोर्स में पांच सो पैदल सिपाही, तीन सौ सवार तथा तीन तोपें  थी, ब्रिटिश फोर्स तथा विद्रोहियों के दल में युद्ध हुआ, विद्रोही ठहर नहीं सके, उन्हें किला खाली करके भाग जाना पड़ा ।

नवाब आली बहादुर अभी बांदा के आस पास ही घूम रहे थे, वह गांव के निवासियों को विद्रोह करने के लिये प्रेरित कर रहे थे, नवाब का अस्थायी मुकाम यमुना नदी पार जलालपुर से पांच मील दूर ही था, यहाँ पर नवाब अपनी सैनिक तैयारी में व्यस्त थे । उनके पास इस समय छैः हजार सिपाही आठ सौ सवार तथा तीन तोपें थीं।

17 मई 1858 में ब्रिटिश सरकार जोर शोर से विद्रोहियों की पकड़-धकड़ में व्यस्त थी क्यों कि कई गांवों में उत्पात हो रहा था कैप्टन गिरफेन, छतरपुर राज्य की सेना के पांच सौ सिपाहियों एवं दो तोपों के साथ पैलानी गया जहां उसने विद्रोह को दबा दिया, कलेक्टर के आदेशानुसार वह फिर जसपुरा तथा चिल्लातारा के विद्रोह को खत्म करने के लिये गया।  उसने मौके पर जाकर देखा कि विद्रोही संख्या में अधिक थे जबकि कैप्टन गिरफिन के पास सेना कम थी, यह सब माजरा देखकर वह उल्टे पांव लौट आया।  

इघर बांदा नगर में शान्ति कायम नहीं हो सकी थी , जनरल विटलाक ने लेफ़्टिनेन्ट मेटजी को आदेश दिया की बांदा के आस-पास पडोसी गांवों के विद्रोह का दमन, कर, तदनुसार लेफ्टीने फोर्स के साथ सिमौनी परगना के पचनेही नामक गांव गया और विद्रोह को आसानी के साथ दवा दिया।

लेकिन परगना मऊ तथा दरसेढ़ा पर अभी भी विद्रोहियों का कब्जा था, नवाब साहब  तो कालपी की ओर चले गए , उसके दो प्रमुख सहयोगी इमदाद आली  बेग तथा दीनदयाल गिरि गुसाई पकड़े गये और उन्हें फांसी दे दी गई, उस समय कार्ने अपनी सेना और बीस तोपों के, बांदा में अमन कायम करने मे लगा था ।

ब्रिटिश  सरकार को विद्रोह का दमन करने हेतु बुन्देलखण्ड के राजाओं के अलावा रीवा का राजा भी मदद कर रहे थे , बाँदा इलाके में फैले हुए  विद्रोह का दमन करने के लिए रीवा राजा ने 5 जून 1858 को एक फौज भेजी, इस फौज में आठ सौ पैदल, एक सौ सवार तथा चार तोपें  थी, इसी प्रकार सोहागपुर फौज  में आठ सौ पैदल, एकसौं सवार तथा चार तोपें  थी, विद्रोह का दमन करने हेतु रीवा राजा ने 11  जून को एक सैनिक टुकड़ी भेजी।

यमुना कछार तो विद्रोहियों की गति विधियों से अशान्त था, अवध की ओर से नौ सौ विद्रोहियों का एक दल 3  जून1858  को यमुना पार करता हुआ राजापुर घाट से बांदा आया हुआ था विद्रोहियों का दबदबा बना हुआ था, वे सुरको   के किले पर धावा बोलने के इंतजार में थे ।

कलेक्टर को जैसे ही  इसकी खबर मिली तो उसने तुरन्त ही नागौद के पॉलिटिकाल असिस्टेन्ट को लिखा कि वह फौरन ही नागौद से एक ब्रिटिश  फोर्स मानिकपुर भेजे, वहां पर यह फोर्स सिरावन की फोर्स के साथ सुरको के किले की सुरक्षा करें तथा विद्रोहियों से उसे बचाये, कलेक्टर ने पालोटिकल असिस्टेन्ट से फोर्स मे  आठ सौ पैदल सिपाहियों, एक सौ सवारों तथा चार तोपों को शामिल करने की मांग की।

बाँदा में जो क्रिसचियन मारे गये थे उनके अवशेष बाल्ट में सुरक्षित रख लिये गये थे, सन् 1858  में जब पुनः बांदा पर विद्रोहियों ने धावा बोला तब उनको यह बाल्ट देखने को मिले । विद्रोहियों ने इसे तोड दिया, तथा अस्थियों को बिखेर दिया। बांदा इलाके के अधिकांश लोगों को पता चला की  नवाब ने ब्रिटिश फौज के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया है तब भी विद्रोह का वातारण बना रहा ।

बांदा में शान्ति कायम करने में मदद हेत मद्रास पल्टन के 150  सिपाहियों की टुकड़ी  को भी बुला लिया था  । भारत के अन्य भागों में विद्रोह 1858  के अन्त तक शान्त हो गया था किन्तु  बन्देलखण्ड में और विशेषकर बांदा इलाके एवं पड़ोसी परगनों में विद्रोही 1858 में भी सक्रिय थे। बुन्देलखण्ड में, देशपत बुन्देला, नन्हे दिवान, बखत सिंह तो पूर्वी बुन्देलखण्ड में फरजन्द अली, मुकुन्द सिंह और राधा गोविन्द सिंह के अलावा रणमत सिह अंग्रेज सरकार की नाक में दम किये हुए थे ।

नारायण राव माधव राव के समर्पण के बाद भी कर्वी इलाके में ब्रिटिश सरकार अमन कायम करने में परेशानी महसूस करती रही थी। पिंडारा  (बरौधा जागीर) नामक स्थान पर एक बगीचे में दलगंजन सिंह नेतृत्व में विद्रोही इकाटठा थे । वहां उन्होंने दो अग्रेजों का कत्ल कर दिया ।  इस समाचार से अंग्रेज  सरकार कुपित हो उठी । ब्रिटिश  फोर्स ने आकर हमला बोला और दलगंजन सिंह को मार डाला।

आधार – 1 – राष्ट्रीय अभिलेखागार, रिवोल्ट इन’ सेन्ट्रल इण्डिया पृष्ठ पर
2 – अमुतलाल नागर, आँखों देखा गदर भृष्ठ ५१.
3 – उत्सर्ग [स्मारिका]
4 – राष्ट्रीय अभिलेखागार, रिवाल्ट इन सेन्ट्रल इण्डिया पर
5 – राष्ट्रीय अभिलेखागर-कन्सल्टेशन ६६ दिनांक २८-५-१८५८ सिक्रेट कलेक्टर बांदा की ओर से कमिश्नर चतुर्थं संभाग के नाम पर संख्या दिनांक १-५-१८५८.
6 – राष्ट्रीय अभिलेखागार१-प्रासीडिंग्ज पोलीटिकल १ अक्टूबर १८५८, अनुक्रमांक १८, भारत सरकार के आदेश दिनांक ७-६-१८५८. २-कन्सलटेशन १६ दिनांक १-१०-१८५८ पोलीटिकल फारेनडिपार्ट मेन्ट इलाहाबाद का अर्धशासकीय नोट संख्या ३३७, दिनांक २५-६-१८५८.
7 – राष्ट्रीय अभिलेखागार कान्सलटेशन २५२/६ दिनांक १७-६-१८५६, पोलीटिकल, कमिश्नर, इलाहाबाद सभाग की ओर से पश्चिमोत्तर प्रान्त सरकार के नाम पत्र संख्या २७७ दिनांक २७-४-१८५६.
8 – राष्ट्रीय अभिलेखगार१-पोलीटिकल सप्लीमेन्टी प्रासीडिंग्ज. ३०-१२-१८५६, दशम भाग अनुक्रमांक १४६६ गवर्नर जनरल के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या २३१, दिनांक १-६-१८५८. १-कन्सलटेशन ४८३ दिनांक २८-५-१८५८, सिक्रट जज कानपुर की ओर से पश्चिमोत्तर प्रान्त सरकार के नाम तौर सं० ३००. दिनांक २२-४-१८५८.
9 – राष्ट्रीय अभिलेखागार गवर्नर जनरल डिसपेच टू सिक्रेट कमेटी संख्या १, दिनांक १६-११-१८५८, तार दिनांक १०-६-१८५८.
10 – राष्ट्रीय अभिलेखागार पोलीटिकल प्रोसीडिंग्ज १३-१२-१८५८ ग्यारहवां भाग, अनुक्रमांक २२०५, मजिस्ट्रेट बांदा की ओर से कमिश्नर चतुर्थ सम्भाग के नाम पत्र संख्या ३३७ दिनांक २७ ६-१८५८.
11 – राष्टीय अभिलेखागार-कन्सटेशन १३०१-२ दिनांक ३०-१२-१८५६ अलीमेन्टी, पालीटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या १३३१ दिनाँक ३-६-१८५६।
12 – राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन २१२-१४ के डब्ल दिनांक १५-१०-१८५८ गवर्नर जनरल के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ३१२ दिनाँक १५-१०-१८५८ ।
16 – राष्ट्रीय अभिलेखागार सिकेट प्रासीडिंग्ज 25-6-1858 (1) अनुक्रमांक १४४ कलेक्टर बांदा की ओर से कमिश्नर चतुर्थ संभाग के नाम पत्र संख्या ३० दिनाँक १७-५-१८५८ । (2) अनुक्रमांक १४८ कलेक्टर बाँदा की ओर से कमिश्नर चतर्य संभाग के नाम पत्र संख्या १७० दिनाँक २१-५-१८५८ ।
17- राष्ट्रीय अभिलेखागरि-सिक्रट प्रासीडिंग्ज़ २५-६-१८५८ । (1) अनुक्रमांक 130 कलेक्टर बांदा की ओर से कमश्निर चतुर्थ संभाग के नाम पत्र संख्या 33 दिनांक १३-५-१८५८ । (2) अनुक्रमांक १४६ कलेक्टर बांदा की ओर से कमिश्नर चतुर्थ संभाग के नाम पत्र संख्या 43 दिनांक १-६-१८५८ ।
18 – राष्ट्रीय अभिलेखागार–(१) सिक्रेट प्रासीडिंग्ज २५-६-१८५८ । अनुक्रमाक १३६ कलेक्टर बाँदा की ओर से कमिश्नर चतुर्थ संभाग के नाम पत्र दिनाँक २८-५-१८५८ (2) पालीटिकल प्रासडिंग्ज ३-६-१८५८, बांदा विषयक रपट प० ४२ ।
19 – राष्ट्रीय अभिलेखागार पालीटिकल प्रासीडिंग्ज ३१-१२-१८५८ दशम भाग अनुक्रमांक १६६८ गवर्नर जनरल एजेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या १७७ दिनांक १०-५-१८५८.
20- राष्ट्रीय अभिलेखागार-पालीटिकल सप्लीमेन्ट्री प्रासीडिंग्ज ३०-१२-१८५६ आठवां भाग अनुक्रमांक १२६६, पालीटिकल एजेन्ट रीवा की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ५०६ दिनांक २७-६-१८५८ ।
21- राष्ट्रीय अभिलेखागार-पालोटिल प्रासीडिंग्ज ३-६-१८५८, बाँदा अफेयान पष्ठ ४३।
22- राष्ट्रीय अभिलेखागार-पालीटिकल प्रासोडिंग्ज ४-३-१८५६, द्वितीय अनुभाग अनुक्रमांक ४६३ कैम्प फतेहपुर से मेजर हर्बट का टेलीग्राम दिनांक २७-१२-१८५८ ।
23- सिन्हा एस० एन० रिवाल्ट आफ १८५७ इन बुन्देलखण्ड ८१ )
24- राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन एजेन्ट प्रासीडिग्ज नवम्र 181 अनुक्रमांक 22/58 पश्चिमोत्तर प्राप्त सरकार का पत्र संख्या 382 दिनांक 2-5–1858 ।
25- 1885 के विद्रोह में बिन्धय प्रदेश का योगदान ।
26- राष्ट्रीय अभिलेखागार सिक्रेट प्रासीडिज 18 जनवरी से 25 मार्च 1859 मार्च अनुक्रमांक 62 भारत सरकार का पत्र।
27- राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन 1273 दिनांक 80-12-1259 पालीटिकल सप्लीमेन्ट्री बनिया का बयान दिनाँक 16-21-1858
28- राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन 30 दिनाँक 7-12-1885 (1) कमिश्नर इलाहाबाद की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या 1538 दि. 15-11-1858। (2) कलेक्टर बाँदा को ओर से कमिश्नर इलाहाबाद के नाम पत्र संख्या 302 दिनांक 28-१0-1858।
29 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पालोंटिलक प्रासोडिग्ज 31-12-1858, ग्यारहवां भाग संदेश संख्या 269 दिनांक 23.12-1858 ।
30- राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन 134. दिनांक 26-1-9859, सिक्रेट मिस्टर पावर की ओर से भारत सरकार के नाम सन्देश 30-8-1858
31- राष्ट्रोप अभिलेखागार – पालटिकल असिस्टेंट बून्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या 270 दि० 10-12-1858 ।
32- राष्ट्रीय अभिलेखागार-पालीटिकल प्रासोडिंग्ज 31-12-1858 ग्यारहवां भाग अनुक्रमांक 2164 विडियमर कारपन्टर की ओर से पालोटिंकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड के नाम पत्र संख्या 149 ।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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