महाकवि ईसुरी अपनी द्विअर्थी फागों के माध्यम से नायिका की आड़ लेकर इस संसार को उपदेशित करते हुए कहते हैं।
बाहर रेजा पैर कड़े गए, नैचैं मूंड़ करैं गए।
जीसे नाम धरै ना कोऊ, ऐसी चाल चलैं गए।
हवा चलें उड़ जाय कंदेला, घूंघट हाथ धरैं गए।
ईसुर इन गलियन में बिन्नू, धीरें पांव धरैं गए।
महाकवि ईसुरी कहते हैं कि इस दुनिया में आए हो तो इसके चाल-चलन बोल-व्यवहार भी सीख लेना जरूरी है। वे कहते हैं कि तहजीब से वस़्त्रों को पहनना, घमण्ड का नशा छोड़कर नीचे सिर झुका कर विनम्रता से चलना चाहिए, जिससे कोई कुछ कह न पाए। इस जगत में अच्छाई-बुराई बराबर है। अब आपको जो अच्छा लगे, उसे अपना लो, तुम्हें संसार वैसा ही नाम देगा।