Homeबुन्देलखण्ड का सहित्यबुन्देलखण्ड की लोक कथाएंApno Apno Bhagya अपनौ-अपनौ भाग्य-बुन्देली लोक कथा 

Apno Apno Bhagya अपनौ-अपनौ भाग्य-बुन्देली लोक कथा 

कत हैं कि धरती पे जोन आउत सब Apno Apno Bhagya लेके आउत।  एक गाँव में अच्छौ खातौ-पीतौ एक सेठ कौ परवार रत्तो। खूब जमीन जायजाद खेती-किसानी साहूकारी उर दुकानदारी खूब लम्मौ चौरों कारबार हतो उनकौ। सेठ जी के चार लरका हते वे अपने-अपने काम काजन में बिवूचे रत्ते। अकेलै उनकौ हल्कौ भइया मनमौजी हतो। खाव पियो उर इतै-उतै डोलत फिरत रये। कओ जो कछू मिलगओ सो खा लओ उर नई मिलो सो भूकई फिरत रये।

सेठ- सेठानी खौं अपने हल्के लरका की हमेशई चिन्तई बनी रत्ती।एक दिनाँ सेठ के बड़े लरका खौं बुलाकै पूछी कै बताव भइया तुम कीके भाग सै खात? ऊने कई कै पिता जी हमतौ आपई के भाग सै खा रये। सुनतनई सेठ जी शांत होकै रै गये। दूसरे दिना मजले लरका खौं बुलाकै जेऊ प्रश्न करो, मजलो बोलौ के हमतौ अपनी

मताई के भाग सै खा पी रये हैं। सुनतनई सेठ जी चुप हो गये अब आई तीसरे लरका की बारी, सुनतनई मजलौ भइया बोलो कैं मताई बाप के आगै हमाओ कायकौ भाग। हम तौ अपने मताई-बाप के भागई सैं खात पियत हैं।

लरका की बातैं सुनकैं सेठ-सेठानी भौतई खुश भये। अब आव उनके हल्के लरका कौ नम्बर। सेठ ने हल्के लरका सै बेऊ प्रश्न करो। हल्कौ तौ अपने अलगई मिजाज कौ हतो। ऊनेना आव देखौ उर ना ताव देखौ ऊनें तो सेठ खौं नीम कैसी करई सुना दई। कन लगो कैं सब अपनौ-अपनौ भाग लिखा कैं आऊत। कोऊ-कोऊ के भाग सैं नई खात। ईमें काऊ की थराई नइयाँ।

जाबात सेठ जी खौं भौतई अखर गई। सोसन लगे कैं देखौ जौ घर कौ तौ कोनऊ टऊका करत नइयाँ। रात दिना नाँय-माँय डोलत फिरत रत। हमाई छाती पै होरा भूँजत रत, उर कत है कैं हम अपने भाग सैं खात। जे ऐसे लरका आँय कै जिनई नें जाये उर उनइयै लजाये। हमाऊ खारये उर हमइयै करओ बुरओ बना रये। कजन इयै

घर सैं निकार दओ जाय। तौ देखौ जौ कीके भाग सैं खात। ऐसी सोसकैं सेठ ने ऊयै बुलाकैं कई कै देखौ तुम अपने भाग सैं खा रये हो। अब आज तुमाओ इतै कोनऊ काम नइया जितै जाने हो सो जाव, उर अपनौ भाग अजमाव। लरका सोऊ बड़ो अख्खड़ हतो। ऊनें काऊसैं कछू नई कई उर मोगौ चालो घर गिरस्ती छोड़कैं परदेशैं कड़ गओ। सेठ जी तौ ऊकौ तमाशौ देखन चाउत ते।

वे जानत ते कै हैरान होकै उयै इतै आउने परें। भूकन मरे सोऊ सबरी पटेरै मर जैय। हल्के भइया तौ परदेशैं जाकै जैसे-तैसे अपनौ पेट भरन लगे, उर उनके तीनई भईयन कौ सेठ जी ने अच्छे साके कौ ब्याव करें। वे तीनई जने अपनी-अपनी घर गिरस्ती समारन लगे।

जे सो डूँड़ा बाँड़ा हते सो थोरौ भौत कर धरकैं अपनौ पेट भरन लगे। जो कछू रूखौ सूकौ मिलो सो खाव उर आराम करो। ऐसई ऐसै कैऊ बरसैं कड़ गई। उन्नें लौटकैं घरै जाबे कौ नाँव नई लओ। ऐसी कानात कई जात कैं ‘मनुस नहीं बलवान है समय होत बलवान’। उर जा धन सम्पति सो उरिया कैसी छइयाँ है। ईकौ नाँव चंचला है, जा एक जागाँ नई रत। हराँ-हराँ सेठ जी कौ करोबार ढीलो परन लगो। रूजगार में घाटो होंन लगो। उर हराँ-हराँ उन पै गिरानी आन लगी, तीनई भइया खड़न खपरन मिल गये। खाबे तक के लाले परन लगे।

सेठ-सेठानी बुढ़ापे में भूँकन प्यासन मरन लगे। कओ कभँऊ-कभऊँ सबरऊ घर कुंदा के बल पै डरो रये। हल्के लरका कौ तौ कछू पतोई ठिकानौ नई हतो। हल्के भइया कौ नाँव राजकुमार हतो। ना कोनऊ चिन्ता उर ना कोनऊ फिकर। खाव पियो उर मस्ती सैं घूमें-फिरे। देखत में रूप रंग उर डील-डौल में राजईकुमार सौ लगत तौ। एक दार वे घूमत फिरत एक बड़े शिहिर में पौचं गये।

ऊ शिहिर के राजा की राजकुमारी ब्याव लाक हतीं। राजा उनके मन कौ वर खोज-खोज कै हैरान हो गये ते। राजा ने पंडितन सैं पूछी सो उन्नें बताई कैं काल पुक्ख नक्षत्र में बेटी के ब्याव को महूरत है। सो आप बड़े तड़कें शंकर जी के मंदिर में जौन लरका दिखा परें सो अपुन ओई के संगै बेटी कौ ब्याव कर दिइयौ।

ईसुर की लीला तौ न्यारई है। इँदयारई में दर्शन करबे चले गये। उर पाछे सै राजा ओई मंदिर में पौंच गये। उतै मंदिर में हल्के भइया खौ देखतनई राजा खुश हो गये। दर्शन करकैं हल्के भइया सै बोले कैं तुम हमाये संगै चलो तुमसैं एक जरूरी काम है। सुनतनई हल्के भइया कौ मौ उतर गओ। सोसन लगे कैं हमनें ऐसी का गल्ती करी जीसैं राजा के नाँ हमाओ बुलौवा हो रओ। उनें असमंजस में देख कैं राजा नें बड़े प्रेम सैं कई कें रानी ने तुमें बुलाओ हैं। तुम कोंनऊ बात की फिकर नई करो, अब तुमाये दिन सूदे हो गये हैं।

हल्के भइया तनक मनधरयात से मौगे चाले राजा के संगै चल दये। उनें देखतनई रानी भौतई खुश भई उर राजकुमारी कौ ब्याव हल्के भइया के संगै कर दओ। उर उनें दायजें में आदौ राज दै दओ। हल्के भइया खौ तौ जौ अचम्भौ सो होरओ तौ कै जौ होका रओ। अब का कनें हल्के भइया तौ भाग सैं अब बिना तिलक के राजा बन गये ते। राजा अब ठाट सैं राजमिहिल मे रन लगे वे कछू दिना तौ राजमिहिल में रये।

फिर राजा ने सोसी के इनें अलग मिहिल बनवा दये जाय। एकई जगापै रये सैं मान मर्यादा घट जात। एक अच्छौ स्थान देख दाख कैं शिहिर के बायरै हल्के भइया कौ मिहिल बनन लगो। उर वे ठाँढ़े-ठाँढ़े ठाट सै काम देखन लगे। उतै उनके तीनई भईयन की हालत भौतई बिगर गईती। मैनत मजूरी करकै अपनौ पैट पालन लगें ते। उन्नें सुनी कैं राजा के दमाद कौ मिहिल बन रओ है। जितै सैकरन मजूर काम पै लग गये हैं। वे तीनई भइया अपने परवार खौं लोआ कै उतै मजूरी पै लग गये उर उतई एक टपरिया डार के बनावन खान लगे।

उतई एक दिना हल्के भइया ने सोसी कै तनक राजमिहिल कौ काम देख आबै, उर वे सूदे मजूरन के लिंगा पौंच गये। उतै देखतनई उन कौ पसीना छूट गओ, उनकी आँखन सैं अंसुआ बउन लगे। धूरा कूरा उर गिलारे में सनें मजूरी कर रये तीनई भइयन खौं देखत नई उने उतै ठाँढ़े होतन नई बनों। वे मौगे चाले लौट कै राजमिहिल में पौंच गये। उर मौगे चाले उदास होकैं पलँग पै जा डरे।

रानी ने उनें उदास देख कै पूछी कै अपुन उतै सैं इत्ती जल्दी काय लौट आय। उर इतै आकैं काय पर रये? वे बोले कै कछू नईं तनक तबियत खराब हती। रानी ने उनें अपनौ कौल धरा कै पूछी के साँसी-साँसी बताव। हल्के भइया बोले कैं हम एक भौत बड़े सेठ के लरका हैं। हमाये तीन और बड़े भइया हैं। उर सबकौ भौतई अच्छौ कारोबार हतो। अकेले हमई उठाई गीर हते। जौ सब रती कौ फेर है कै हम राजसिंहासन पै बैठे उर हमाये भइया उर भौजाई हमाई इतै मजूरी कर रये।

अब आप दुःखी काय खौं हो रये। अपने इतै कोनऊ कमी तौ है नइयाँ। अपने इतै कित्ते कर्त्ता कामदार खा रये पी रये मजा उड़ा रये। का अपुन अपने इतै घर परिवार खौं नई खोआ पिआ पैय उन सबखौ। इत्ती सुन कै हल्के भइया खौ भौतई धीरज बँध गओ। उन्ने एक सिपाई खौ उनके डेरा नौ पौंचा कै जा खबर दई कै तुम तीनईयँन के परिवार खौं राजासाव नें मिहिलन में बुलौवा दऔ है।

सुनतनई उनके तरवनहुन झार सी छूट गई। उर उनन कौ जिऊ धक-धक होन लगो। वे सोसन लगे कै हम सैं ऐसी का गल्ती हो गई कैं राजा साव कौ बुलौवा आ गओ। डरात-डरात वे सबई जनें मिहिलन के दोरै पौंच गये। ऊपर हुन हल्के भइया ने देख लओ कैं सबई जनें आ गये हैं। उन्ने खबर पौंचाई कैं सबई जनें सपर खौर कै तेल सावन लगा कै चौका में भोजन करबे आ जाबैं उनन खौं अचम्भौं सौ हो रओ तो कैं जौकाय हो रओ। हम सपनौ तौ नोंई देख रये।

मौगे चाले सपर खोर कैं वे सूदे चौंका में पौंच गये। उनें अच्छौ भोजन परसो गओ। कैऊ दिना के भूके प्यासे डरे ते खूब शकभर भोजन करो। उर मौं हात धोकै मौगे चाले बैठ गये। तनक देर में हल्के भइया नें मूँढ धर के पाँव परे। रानी ने आकै अपनी जिठानीयँन के पाँव परे। उर सबई भईयँन खौं खबर आगई कै दादा ने ई हल्के भइया खौ घर सै निकार दओ तौ, देखौ जो सब भाग कौ खेल है कैं हम सब तौ पिरियाँ डार रये उर हल्कौ भइया राजा बनों बैठो।

हल्के भइया नें सबई के लानें मकान बनवा दये। उर उनके मताई बाप खौ खबर मिली सो वे फूल कैं कुप्पा हो गये। उर अपने हल्के लरका नौ पौंच कैं उयै अपने गरे सैं लगा लओ। कुजाने कबै कीकौ भाग खुल जावैं को जान सकत। फिर वे सबई जनें आनंद सैं रन लगे। बाढ़ई ने बनाई टिकटी उर हमारी किसा निपटी।

बुन्देली लोक कथाएं -परिचय 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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