बुंदेली झलक के बारे में
About Bundeli Jhalak

बुन्देलखण्ड भारत का हृदय है।बुन्देलखण्ड का प्राचीन नाम दशार्ण तथा फिर जुझौति प्रदेश रहा है। जब से बुन्देला क्षत्रियों ने राज्य स्थापित किया उस समय से यह बुन्देलखण्ड कहलाने लगा। 

बुन्देली झलक की स्थापना नवंबर 2018 में हुई । बुन्देली झलक के संस्थापक गौरीशंकर रंजन ने कीर्तिशेष आदरणीय श्री गुणसागर शर्मा ‘सत्यार्थी’ ( वरिष्ठ साहित्यकार, बुन्देली लोकविद)  और आदरणीय श्री सुरेश द्विवेदी ‘पराग’ ( वरिष्ठ साहित्यकार) के मार्गदर्शन मे शुरू किया । बुन्देलखण्ड के अनेक साहित्यकारों, विद्वानों नें भरपूर सहयोग किया ।

बुन्देली झलक संस्थान का उद्देश्य विलुप्त होती लोककला, संस्कृति, साहित्य एवं परंपराओं का संरक्षण-संवर्धन के साथ उनको पुनर्स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना एवं पुनर्स्थापित करने में जन-मानस का सहयोग करना। हमारी परम्पराएं लोक विज्ञान पर आधारित हैं अतः इन परंपराओं पर शोध कर इन्हे समाज में पुनर्स्थापित करना अति आवश्यक है । अपनी बोली अपनी भाषा से विमुख होते लोगों को अपनी बोली के प्रति प्रोत्साहित करना ।  

बुन्देली झलक की  कोशिश है कि बुन्देलखण्ड  की लोक कला, संस्कृति,परम्पराओं एवं साहित्य की सम्पूर्ण जानकारी और बुन्देलखण्ड के लोक कलाकार (गायक, वादक), साहित्यकार, बुद्धजीवी, सामाजसुधारक, संस्कृतिकर्मी आदि  का जीवन परिचय एवं उनके उत्कृष्ट कार्यों को वेबसाईट के माध्यम से आम जानमानस तक पहुचाना ।

बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति, साहित्य, परम्पराएं, लोक जीवन एवं  लोक पर्व-त्योहारों, बुन्देली किस्सा -कहानियों, बुन्देलखण्ड की  लोक कथाएं , लोक गाथाएं , लोक देवता, बुंदेलखण्ड का इतिहास  आदि  की विस्तृत शोधपरक जानकारी वेबसाईट https://bundeliijhalak.com/ मे उपलब्ध है ।


बुन्देलखंड की लोककला, संस्कृति और साहित्य के इतिहास का अन्वेषण
Explore the history of the folk art, culture and literature of Bundelkhand

बुन्देलखण्ड भारत का मध्य भाग है। यहाँ भारतीय इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियाँ घटित हुई है। सांस्कृतिक रूप से भी यहाँ अनेक संस्कृतियों का आवागमन रहा है। सांस्कृतिक गतिविधियों में यह क्षेत्र संगीत, नृत्य, मूर्तिकला, चित्रकला, के साथ साथ साहित्य लोक साहित्य की कोई भी विधा हो बुन्देलखण्ड में एक विशिष्ट संस्कृति के साथ नया  जीवन पाती रही है। बुन्देलखण्ड की यही सांस्कृतिक विरासत ,पहचान और प्रतिष्ठा रही है।

किसी भी देश-प्रदेश की पहचान उसकी लोककला और संस्कृति होती है। बुन्देलखण्ड की लोक संस्कृति विलुप्त होने की कगार पर है। बुंदेली झलक अब यदा-कदा केवल गांवों में होने वाले वैवाहिक कार्यक्रमों में ही लोक गायन सुनने को मिलता है।

बुन्देली लोक नृत्य राई की बात करें या फिर वीर रस से परिपूर्ण महोबा के आल्हा-ऊदल को समर्पित आल्हाखण्ड की अथवा जन्म और वैवाहिक संस्कार के समय गाए जाने वाले तरह- तरह के पारम्परिक लोकगीत गारी, बन्ना, सोहर, ढिमरयाई, कछियाई, रावला, लमटेरा आदि लोक गायन सभी लोगों की पहुंच से दूर होते जा रहे हैं। हम अपनी बुन्देली विरासत को भुलाते जा रहे हैं।

बुंदेली झलक बुन्देलखण्ड की संस्कृति के विविध रंगो  से बनी हुई है। जिसमे नृत्य, संगीत, गीत की मधुर रसधारा बहती रहती है। बुन्देलखण्ड की संस्कृति, भारतीय संस्कृति में अपनी अलग और विशेष पहचान रखती है। जिसका अतीत मे एक विशेष स्थान रहा है। बुन्देलखण्ड में प्रत्येक तिथि एक पर्व होता है।

जो लोक जीवन में उल्लास भर देता है। कला, संस्कृति और साहित्य का संरक्षण किसी एक अकेले का दायित्व नहीं होता, उसमें पूरे समाज का सक्रिय, सामूहिक दायित्व होता है। बुंदेली झलक समाज का एक छोटा सा हिस्सा है। विलुप्त होती लोक संस्कृति को पुर्नजीवित करने के लिए एक संकल्प है।

बुंदेली झलक विलुप्त होती बुंदेली कला और संस्कृति को प्रोत्साहित करना एवं इन्ही विलुप्त होती कला और संस्कृति को बचाने और समस्त जन मानस तक पहुचाने का एक प्रयास है ताकि कला और संस्कृति से जुडे बुनियादी, सांस्कृतिक और सौंदर्यपरक मूल्यों तथा अवधारणाओं को जन मानस में जीवंत रखा जा सके।

 

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