आभार प्रदर्शन
आदरणीय दुखो ! चिन्ताओ !
चिर – सहचर आँसुओ , अभावो ।
तन मन , प्राण सजाकर तुमने ,
किया न पलक ओट पल भर को ,
रोम- रोम इस ऋणी देह का , करता है आभार प्रदर्शन ।
हर धड़कन अनुकम्पित उर की करती है कृतज्ञता ज्ञापन ॥
सांस- सांस बिन फेरे रहती , मन- मण्डप सूना रह जाता।
कौन चढ़ाता लगन तुम बिना , इतना सुयश कहाँ वर पाता ॥
खूब निबाहा मुझ गरीब को , जग में तुमसा कौन महाजन ॥
आदरणीय…
जब भी सुख आया मेरे ढिग , भ्रम वश , कुछ साँसे रंग देने ।
कुछ सपनों , कुछ मधुर- स्मृतियों का पाथेय भेंट में देने ॥
किया सुदूर बाँह गह तुमने सदा निभाया नेह- पुरातन ॥
आदरणीय…
जीवन बंजारे सा पाकर क्या जानूं आपका घर आँगन ।
लिखा भटकना बस्ती- बस्ती चलते ही रहना है हर क्षण ॥
काँटे , छाले , मिले नियति से , तुमसे मधुगीतों क़ा चन्दन ॥
आदरणीय…
दो वर उर दुष्यंत न भूले , पीड़ा शंकुतला का परिणय ।
ह्रदय ईसुरी , राजउ वेदना बना सजूँ गीतों से ही वय ॥
अथ तो दिया अरण्य काण्ड से इति दो उत्तर कांड सुपावन ॥
आदरणीय…….